नए कानूनों की आवश्यकता है, लेकिन बदलती परिस्थितियों के अनुरूप विधि निर्माण का कार्य नहीं होता।
2.
इस अध्याय में सद्यः मुक्ति एवं संन्यासी के शरीर त्याग की योगतंत्र परंपरा के अनुरूप विधि बतायी गयी है, जिसके अंतर्गत बाह्य एवं आंतरिक आचारों का वर्णन है।
3.
अब औद्योगिक घराने तथा कारपोरेट सेक्टर देश की खेती-किसानी पर कब्जा करना चाहते हैं और उनके द्वारा संचालित सरकारें, उनकी सुविधा अनुरूप विधि का निर्माण कर रही हैं।
4.
विज्ञान एवं वैज्ञानिक जैसे सबको प्रिय नहीं हो सकते वैसे ही असली तांत्रिक भी सबको प्रिय नहीं हो सकते क्योंकि वे किसी एक समाज के अनुरूप विधि तो बता सकते हैं, उस सीमा में बँाध नहीं सकते।
5.
यदि विधि समाज के विवेक और शील का प्रतीक है तो भी विधिरचना में व्यस्त चाहे वह विधानमंडल हो अथवा न्यायाधीश, जो परंपराओं को नवीन स्थितियों में लागू करने के लिए नई व्यवस्थाएँ देते हैं अथवा ऐसे दार्शनिक विचारक जो समाज के विश्लेषणात्मक अध्ययन के उपरांत उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप विधि बनाने पर जोर देते हैं अथवा ऐतिहासिक विकासशृंखला के ऐसे नरेश, सत्तासंपन्न व्यक्ति जिन्होंने अपनी शक्ति और निदेश से नए नियमों की रचना की, उन सभी को विधिकार कहा जा सकता है।